Beautiful thought
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श्रूयतां धर्मसर्वस्वं, श्रुत्वा चैवावधार्यताम्।
आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषां न समाचरेत्।।
अर्थात : धर्म का सार तत्व यह है कि जो आप को बुरा लगता है वह काम आप दूसरों के लिए भी न करें ।
*अनुभव कहता है !
खुश रहना है तो उन चीजों को त्याग दो जो तुम दूसरों से त्यागने की आशा लगाए बैठे हो !
‘खुश’ रहने के लिए
बहुत कुछ इकट्ठा करने की जरूरत नहीं बस अंतरात्मा में मात्र तृप्त भाव रखने की जरूरत है !!
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